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मिशन शक्ति पोर्टल

सरकार ने परेशान महिलाओं के लिए मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान की सेवाएं लीं

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों को ध्यान में रखते हुए नागरिक कानून के तहत उपाय प्रदान करने के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण कानून (पीडब्ल्यूडीवीए), 2005 को अधिनियमित किया गया है जिसका उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होने से बचाना और समाज में घरेलू हिंसा की घटना को रोकना है।

भारत में घरेलू हिंसा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण कानून (पीडब्‍ल्‍यूडीवीए), 2005 के तहत नियंत्रित है और इसे धारा के तहत परिभाषित किया गया हैजिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति का कोई भी कार्यचूक या कमीशन या आचरण किसी महिला के स्वास्थ्य या सुरक्षा को नुकसान पहुंचाता है या चोट पहुंचाता हैचाहे वह मानसिक हो या शारीरिकयह घरेलू हिंसा के बराबर है। इसमें किसी भी महिला या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति को किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए पहुँचाया गया कोई भी नुकसानउत्पीड़न या चोट भी शामिल हैजो घरेलू हिंसा के बराबर होगा।

उक्त कानून में ऐसी महिलाएं शामिल होंगी जो किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रिश्ते में हैं या रही हैंजहां दोनों पक्ष एक ही घर में एक साथ रहते हैं और रक्त संबंधविवाह या विवाह या गोद लेने की प्रकृति के रिश्ते के माध्यम से संबंधित हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) महिलाओं के खिलाफ अपराधों सहित अपराधों पर डेटा संकलित करता है और इसे “भारत में अपराध” शीर्षक से अपने प्रकाशन में प्रकाशित करता हैजो एनसीआरबी की आधिकारिक वेबसाइट (https://ncrb.gov.in) पर उपलब्ध है। यह रिपोर्ट वर्ष 2022 तक उपलब्ध है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसारपीडब्ल्यूडीवीए के तहत दर्ज मामलों की संख्या 2021 में 507 और 2022 में 468 थी।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) की नवीनतम रिपोर्ट, 2019-2021 की अवधि के लिए डेटा प्रदान करती हैजिससे पता चलता है कि 18-49 वर्ष की आयु की कभी भी विवाहित महिलाओं का प्रतिशतजिन्होंने कभी वैवाहिक हिंसा (शारीरिक और/या यौन हिंसा) का अनुभव किया है, 2015-2016 की अवधि के लिए एनएफएचएस-में बताए गए 31.2 प्रतिशत की तुलना में घटकर 29.3 प्रतिशत हो गया है।

भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत "पुलिस" और "सार्वजनिक व्यवस्था" राज्य के विषय हैं। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों में जांच और मुकदमा चलाने सहित कानून और व्यवस्था बनाए रखनेनागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकारों की है और वे इससे निपटने में सक्षम हैं। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण कानून (पीडब्ल्यूडीवीए), 2005 की धारा राज्यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों को प्रत्येक जिले में उतनी संख्या में संरक्षण अधिकारी नियुक्त करने का आदेश देती हैजितनी वे आवश्यक समझें और साथ ही उस क्षेत्र या क्षेत्रों को अधिसूचित करने का भी निर्देश देती हैजिसके भीतर एक संरक्षण अधिकारी अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगा और प्रदत्त कर्तव्यों का पालन करेगा। घरेलू हिंसा के मामलों की शिकायत प्राप्त होने पर मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट करना और मजिस्ट्रेट को उनके कार्यों के निर्वहन में सहायता करना संरक्षण अधिकारी का कर्तव्य है। हालांकिकिसी आरोपी व्यक्ति को कानून के प्रावधानों के अनुसार तथ्यात्मक स्थितिसाक्ष्य और सभी संबंधित कानूनी पहलुओं पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराया जाता है। पीडब्ल्यूडीवीए के तहत महिलाओं को सुरक्षा आदेशनिवास आदेश आदि जैसे उपचार उपलब्ध कराए जाते हैं।

फिर भीकेन्‍द्र सरकार महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है और इस संबंध में विभिन्न कानूनी और योजनाबद्ध हस्तक्षेप किए हैं। इनमें “भारतीय न्याय संहिता”, “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता”, “घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण कानून, 2005”, “दहेज निषेध कानून, 1961” आदि जैसे कानून शामिल हैं। इन कानूनी प्रावधानों के अलावा सरकार द्वारा कई योजनाएं और परियोजनाएं लागू की गई हैं जिनमें वन स्टॉप सेंटर (ओएससी)महिला हेल्पलाइनों का सार्वभौमिकरण (डब्ल्यूएचएल)आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस) जो आपात स्थितियों के लिए एक अखिल भारतीय एकल नंबर (112)/मोबाइल ऐप आधारित प्रणाली हैजागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय में क्षमता निर्माणपुलिस स्टेशनों पर महिला हेल्प डेस्क (डब्ल्यूएचडी) की स्थापना/मजबूतीकरण आदि शामिल हैं।

मिशन शक्ति अम्ब्रेला योजना का घटक वन स्टॉप सेंटर (ओएससी), जो केन्‍द्र सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित है, 1 अप्रैल, 2015 से पूरे देश में लागू किया गया है। यह हिंसा से प्रभावित महिलाओं और परेशान महिलाओं को निजी और सार्वजनिक दोनों जगहों पर एक ही छत के नीचे एकीकृत सहायता प्रदान करता है। यह जरूरतमंद महिलाओं को चिकित्सा सहायताकानूनी सहायता और सलाहअस्थायी आश्रयपुलिस सहायतामनो-सामाजिक परामर्श सहित सेवाओं की एक एकीकृत श्रृंखला भी प्रदान करता है। देश भर में 802 ओएससी चालू हैं और 31 जनवरी, 2025 तक 10.80 लाख से अधिक महिलाओं को सहायता प्रदान की गई है।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि पुलिस स्टेशन महिलाओं के लिए अधिक अनुकूल और सुलभ होंक्योंकि वे पुलिस स्टेशन में आने वाली किसी भी महिला के लिए संपर्क का पहला और एकमात्र बिंदु होंगे, 14,658 महिला सहायता डेस्क (डब्‍ल्‍यूएचडीस्थापित किए गए हैंजिनमें से 13,743 का नेतृत्व महिला पुलिस अधिकारी कर रही हैं। जरूरतमंद महिलाओं और परेशान महिलाओं को मदद और सहायता प्रदान करने के लिएविभिन्न आपात स्थितियों के लिए सभी 36 राज्यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों में इमरजेंसी रिस्पांस सपोर्ट सिस्टम (ईआरएसएस-112) की स्थापना की गई हैजिसमें फील्ड/पुलिस संसाधनों का कंप्यूटर सहायता प्राप्त प्रेषण है। इसके शुभारंभ के बाद से अब तक 43 करोड़ से अधिक कॉल संभाले जा चुके हैं। ईआरएसएस के अलावापश्चिम बंगाल को छोड़कर 35 राज्यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में पूरी तरह कार्यात्मक समर्पित महिला हेल्पलाइन (डब्‍ल्‍यूएचएल-181) चालू है। डब्‍ल्‍यूएचएल को ईआरएसएस के साथ भी जोड़ा गया है।

महिला हेल्पलाइन को लागू करने वाले सभी राज्यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में कॉल की निगरानी के लिए सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (सी-डैक) द्वारा एक राष्ट्रीय डैशबोर्ड विकसित किया गया है। यह डैशबोर्ड प्राप्त कॉल और सहायता प्राप्त महिलाओं की वास्तविक समय पर निगरानी करने में सक्षम बनाता है। इस प्रणाली के माध्यम सेकेन्‍द्र सरकार पूरे भारत में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली हिंसा पर केन्‍द्रीकृत डेटा बनाए रखने में सक्षम हैजिसे घरेलू हिंसा के मामलों सहित मामलों के प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया गया है।

हिंसा से प्रभावित और परेशान महिलाओं को मनोवैज्ञानिक-सामाजिक परामर्श की आवश्यकता को समझते हुएमहिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ऐसी महिलाओं की मनोवैज्ञानिक-सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देश भर के वन स्टॉप सेंटरों (ओएससी) के कर्मचारियों को “स्त्री मनोरंजन” नामक परियोजना के अंतर्गत बुनियादी और उन्नत प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहंस) की सेवाएं ली हैं। मंत्रालय समय-समय पर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए जागरूकता अभियान भी चलाता है। इसके अलावासरकार राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) जैसी संस्थाओं के माध्यम से लोगों को महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और कानून के विभिन्न प्रावधानों के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए सेमिनारकार्यशालाओंऑडियो-विजुअलप्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि के माध्यम से जागरूकता फैला रही है। इसके अतिरिक्तमहिला एवं बाल विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर समय-समय पर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को सलाह जारी करती रहती है।

निर्भया फंड के तहतपुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी) ने भी कई पहल की हैंजिसमें अन्य बातों के साथ-साथ जांच अधिकारियोंअभियोजन अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम शामिल हैं। बीपीआरएंडडी ने चार महत्वपूर्ण घटकोंयानी बुनियादी ढांचेप्रशिक्षणमानव संसाधन विकास और प्रतिक्रिया तंत्र पर ध्यान केन्‍द्रित करके उनके सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए “वुमन्‍स हैल्‍प डेस्‍क ऐट पुलिस स्‍टेशन्‍स” के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी तैयार की है। महिलाओं के खिलाफ अपराध की रोकथाम और जांच के उद्देश्य से "“वुमन्‍स सेफ्टी एंड सिक्‍यूरिटी-ए हैंडबुक फॉर फसर्ट रिस्‍पांडर्स एंड इनवेस्‍टीगर्स इन द पुलिस” शीर्षक से एक पुस्तक भी तैयार की गई हैजिसमें यौन उत्पीड़न के अपराध के विशेष संदर्भ में जांचपीड़ित को मुआवजा और पुनर्वास शामिल है। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम और अपराध का पता लगाने और पीड़ितों के साथ उचित बातचीत के लिए पुलिस बल में उचित व्यवहार और मनोवृत्ति कौशल विकसित करने पर जोर दिया गया है। बीपीआरएंडडी द्वारा संवेदनशीलता के साथ महिला सुरक्षापुलिस कर्मियों का लिंग संवेदीकरण आदि पर वेबिनार भी आयोजित किए गए।

सरकार ने महिलाओं को सशक्त बनाने, सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने और विभिन्न योजनाओं एवं कानूनों के तहत पदाधिकारियों एवं कर्तव्यधारकों के क्षमता निर्माण के लिए 'मिशन शक्ति पोर्टल' की शुरूआत की मंत्रालय ने 22 जनवरी, 2025 को सभी कार्यात्मक सुविधाओं के साथ 'मिशन शक्ति पोर्टललॉन्च किया है। इस पोर्टल का उद्देश्य महिलाओं के लिए विभिन्न सरकारी सेवाओं की पहुंच बढ़ानाबचावसुरक्षा और पुनर्वास के लिए गुणवत्ता तंत्र स्थापित करना और विभिन्न योजनाओं और कानूनों के तहत पदाधिकारियों और कर्तव्य धारकों की क्षमता का निर्माण करना है।

यह जानकारी महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में दी।

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