आयुक्त के पद पर सक्षम व्यक्ति की नियुक्ति - राज्य शासन पर यह निर्भरता है कि वह देश एवं प्रशासनिक क्षमता रखने वाले अधिकारी को नगरपालिक निगम में "आयुक्त" के पद पर सक्षम व्यक्ति की नियुक्ति करे। सदैव डिप्टी कलेक्टर को ही "आयुक्त" के पद पर पदस्थ किया जाए, ऐसी कोई परम्परा नहीं हो सकती है। यह हमेशा राज्य शासन के विवेक पर निर्भर होता है। (रामप्रताप दि म.प्र. राज्य 1994 म.प्र.ला.ज. 12-1994 ज.ला.ज. 687)।
55. आयुक्त की शक्ति - आयुक्त निगम का मुख्य कार्यपालिक पदाधिकारी होगा और निगम कार्यालय के सेवक तथा पदाधिकारियों के अतिरिक्त निगम के समस्त अन्य पधाधिकारी तथा सेवक उसके अधीन होंगे। उसे निगम के या उसकी किसी समिति के सम्मिलन में बोलने और अन्यथा भाग लेने का स्वत्व प्राप्त होगा, किन्तु वह मत देने का या कोई प्रस्ताव रखने का स्वत्वधारी नहीं होगा।
56. आयुक्त का वेतन -
(1) आयुक्त ऐसा मासिक वेतन तथा ऐसे मासिक भत्ते प्राप्त करेगा जिन्हें शासन समय-समय पर निरुपित करे।
(2) आयुक्त के रुप में नियुक्त ऐसे व्यक्ति के, जो शासन के अधीन किसी पद पर स्वत्वभार रखता हो, अपनी पूर्वोक्त नियुक्ति के कार्यकाल में [ उपधारा (1) के आदेशों के पालन के अधीन, सेवा के प्रतिबंध ] वही होंगे, जो शासन द्वारा नियत किये जावें, और किसी अन्य दशा में वे ऐसे होंगे जैसे कि निगम द्वारा बनाई गई [ उपविधियों ] द्वारा नियत किये जावें।
57. आयुक्त को अनुपस्थित रहने की अनुमति का प्रदान किया जाना -
(1) शासन निगम की पूर्व स्वीकृति से आयुक्त को अनुपस्थित रहने की अनुमति प्रदान कर सकेगा।
(2) आयुक्त के अवकाश पर अनुपस्थित होने के समय शासन आयुक्त के रुप में कार्य करने के लिये किसी व्यक्ति को नियुक्त करेगा।
(3) इस प्रकार नियुक्त किया गया प्रत्येक व्यक्ति इस अधिनियम द्वारा या तत्कालीन प्रभावशील किसी अन्य अधिनियमिति द्वारा, आयुक्त को प्रदान की गई शक्तियाँ प्रयोग में लायेगा और उस पर आरोपित कर्तव्यों का सम्पादन करेगा और वह उन्हीं दायित्वों, आयंत्रणों तथा प्रतिबंधों के पालन के अधीन होगा, जिसके अधीन आयुक्त दायी है और वह ऐसा मासिक वेतन तथा भत्ते प्राप्त करेगा जैसा कि शासन निरुपित करे।
नोट: प्रभारी प्रशासक द्वारा आयुक्त की शक्तियों का प्रयोग नहीं- नगरपालिक निगम के प्रशासक पद पर नियुक्त प्रभारी प्रशासक द्वारा "आयुक्त" पद की प्रशासनिक शक्तियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है। सामान्यतः नियुक्ति प्राधिकारी अथवा अनुशासनिक प्राधिकारी की शक्तियों का प्रयोग प्रभारी प्राधिकारी द्वारा नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसे शासन द्वारा इस धारा के प्रावधान अंतर्गत इस संबंध में विशिष्ट आदेश पारित न किया गया हो। (गोविन्द कुमार सेन वि. म.प्र. रज्य वगै. 2007(1) म.प्र. ला.ज. 517 (म.प्र.)।
(3) आयुक्त के विशेष कार्य- जब कभी इस अधिनियम में स्पष्ट रुप से इस प्रकार निर्देशित किया जावे, निगम या स्थायी समिति की मान्यता या स्वीकृति के अधीन और इस अधिनियम द्वारा आरोपित अन्य समस्त आयंत्रणों, बंधनों तथा प्रतिबंधों के भी पालन के अधीन, इस अधिनियम के आदेशों को कार्यान्वित करने के आशय के लिए संपूर्ण कार्यपालिक शक्ति आयुक्त में वेष्टित होगी, जो-
(अ) ऐसे समस्त कर्तव्यों का भी संपादन करेगा तथा ऐसी समस्त शक्तियों को भी प्रयोग में लायेगा जो इस अधिनियम द्वारा उस पर आरोपित किये जावें या उसको प्रदत्त की जावें;
(आ) कर्तव्यों को नियत करेगा तथा निगम कार्यालय के पदाधिकारियों तथा सेवकों के अतिरिक्त अन्य समस्त नगरपालिक पदाधिकारियों तथा सेवकों के कार्यों तथा उनकी कार्यवाहियों का पर्यवेक्षण भी करेगा तथा उन पर नियंत्रण भी रखेगा और तत्कालीन प्रचलित नियमों, या उप-विधियों तथा सेवकों की सेवाओं और उनके वेतन, विशेषाधिकारों तथा भत्तों से संबंधित समस्त प्रश्नों का निराकरण भी करेगा;
(इ) किसी दुर्घटना या पूर्वादृष्ट घटनां के घटित होने पर, या कोई ऐसी भयंकर घटना घटित होने की आशंका होने पर, जिसमें निगम की किसी संपत्ति को व्यापक क्षति पहुंचने की संभावना सन्निहित हो, या जिसमें मानव या पशु जीवन को संकट या संकट पहुंचने की संभावना सन्निहित हो, ऐसी तत्कालिक कार्यवाही भी करेगा, जैसी कि आकस्मिक आवश्यकता की दशा में उसे न्यायसंगत तथा आवश्यक प्रतीत हो, और ऐसा कर चुकने पर ऐसी कार्यवाही की, जो उसने की हो, तथा उसे करने के लिये अपने कारणों की और ऐसे व्यय की, यदि कोई हो, जो ऐसी कार्यवाही के परिणामस्वरुप हुआ हो या होने की संभावना हो तथा जो चालू बजट अनुदान के अंतर्गत न आता हो, रिपोर्ट स्थायी समिति या निगम को तत्काल प्रस्तुत करेगा।
(4) नगरपालिक पदाधिकारी आयुक्त की शक्तियां प्रयोग में लाने के लिए सशक्त किये जा सकेंगे- इस अधिनियम द्वारा आयुक्त को प्रदत्त या उस पर आरोपित या उसमें वेष्टित कोई भी शक्तियां, कर्तव्य या कार्य, आयुक्त के नियंत्रण के अधीन तथा उसके अधीक्षण के एवं ऐसे प्रतिबंधों तथा सीमाओं के, यदि कोई हों, पालन के अधीन, जिन्हें नियत करना वह उचित समझे, किसी ऐसे नगरपालिक पदाधिकारी द्वारा क्रमशः प्रयोग में लाई जा सकेगी, संपादित किये जा सकेंगे या निष्पादित किये जा सकेंगे, जिसे आयुक्त व्यापकतः या विशेषतः इस संबंध में लिखित रुप में सशक्त करें।
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71. निगम लिखित में प्रस्तुत करने के लिए आयुक्त को आदेश दे सकेगा -
(1) निगम,आयुक्त को, निम्नलिखित के लिये, किसी भी समय, आदेश दे सकेगा
(अ) किसी ऐसे लेख्य-संग्रह, पत्र-व्यवहार, योजना चित्र या अन्य लिखतम प्रस्तुत करने के लिए जो उसके आधिपत्य में हो या आयुक्त होने के नाते, उसके नियंत्रण के अधीन हो या जो उसके कार्यालय में या उसके अधीनस्थ किसी नगरपालिक पदाधिकारी या सेवक के कार्यालय में लेख्यसंग्रहित या प्रकरण पत्र में सम्मिलित हो;
(आ) किसी ऐसे विषय के संबंध में जो इस अधिनियम के प्रशासन या नगर के नगरपालिक शासन से संबंधित हो, कोई विवरण-पत्र, योजना-चित्र, अनुमान, वृत्तान्त-पत्र, लेखा या स्थिति-अंक प्रस्तुत करने के लिए;
(इ) या तो स्वयं के द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए या इस अधिनियम के प्रशासन या नगर के नगरपालिक शासन से संबंधित या उससे संबद्ध किसी भी विषय पर रिपोर्ट, अपने अधीनस्थ विभागाध्यक्ष से प्राप्त करके उसे, उस पर अपनी स्वयं की टिप्पणी सहित प्रस्तुत करने के लिए।
(2) उपधारा (3) में आदिष्ट रुप के अतिरिक्त प्रत्येक ऐसी मांग का, आयुक्त द्वारा किसी अनुचित विलंब के बिना, पालन किया जायेगा और प्रत्येक नगरपालिक पदाधिकारी तथा सेवक किसी ऐसी मांग के अनुसरण में आयुक्त द्वारा दी गई किसी भी आज्ञा का पालन करने के लिए बाध्य होंगे।
(3) यदि, कोई ऐसी मांग की जाने पर आयुक्त यह घोषित करे कि उसका तात्कालिक पालन निगम या जनता के हितों के लिए हानिकारक होगा, तो उसके लिए यह वैध होगा कि वह ऐसे पालन को उस समय तक स्थगित रखे जो उसके इस प्रकार पूर्वोक्त रुप में घोषणा करने के पश्चात निगम के द्वितीय साधारण सम्मिलन के काल के बाद का न हो। यदि, ऐसे सम्मिलन या उसके किसी पश्चात्वर्ती सम्मिलन के समय, निगम उसी मांग को दुहराये और आयुक्त को उस समय भी ऐसी मांग का पालन करना अनुचित प्रतीत हो, तो वह इस आशय की एक घोषणा करेगा। तदुपरान्त निगम के लिए यह वैध होगा कि वह किसी ऐसी समिति का निर्माण करे जिसमें महापौर, निगम द्वारा चुना गया एक पार्षद तथा स्थायी समिति द्वारा अपने सदस्यों में से निर्वाचित एक सदस्य होगा, जो उपधारा (3) में आदिष्ट किये गये के अतिरिक्त ऐसी समस्त लिखतमों तथा विषयों के अस्तित्व तथा अभिप्राय को गुप्त रखेगी जो उसके समक्ष प्रगट किये जावें। आयुक्त उक्त समिति को ऐसे समस्त लेखों तथा विषयों की जानकारी देने तथा उन्हें उनके समक्ष प्रगट करने के लिए आबद्ध होगा जिनका उसे ज्ञान हो, या जो उसके नियंत्रण के अधीन हों, या अन्य प्रकार से उसे उपलभ्य हो, तथा उक्त मांग में सम्मिलित हों। उक्त समिति, इस प्रकार उसके समक्ष प्रस्तुत की गई जानकारी, लेखों तथा विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात बहुमत से यह निरुपित करेगी कि ऐसे संपूर्ण विषय या उनका कोई भाग तथा उनका कौन सा भाग, यदि कोई हो, निगम के समक्ष प्रगट किया जाना चाहिये अथवा नहीं किया जाना चाहिये अथवा किसी निश्चित समय तक गुप्त रखा जाना चाहिए, ऐसा निर्णय अंतिम होगा तथा उसकी रिपोर्ट, निगम को उसके आगामी साधारण सम्मिलन के समय दी जावेगी। ऐसे सम्मिलन के समय आयुक्त, जब वह ऐसा करने के लिए निगम द्वारा आदेशित किया जावे, किन्हीं भी लिखतमों को प्रस्तुत करेगा और कोई ऐसी रिपोर्ट या कथन करेगा जो समिति के निर्णय को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक हो।
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