नपुसंकता और चिकित्सकीय साक्ष्य नपुसंकता, विवाह के पक्षकारों का अंतरंग मामला है जिसे स्वीकार करने में न्यायालय से सजगता और सावधानी अपेक्षित है। नपुसंकता का अर्थ सम्भोग या मैथुन में असमर्थता है। जब विवाह के दोनों । पक्षकार एक-दूसरे पर नपुसंकता का आरोप लगाते है तो समस्या अधिक जटिल हो जाती है और इस स्थिति में चिकित्सकीय साक्ष्य महत्वपूर्ण है। मा. सर्वोच्च न्यायालय ने यह धारित किया है कि "जिस व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक स्थिति के कारण मैथुन पूर्ण होना असंभव है, वह नपुसंक है। कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 12 के अधीन न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि किसी चिकित्सा विशेषज्ञ की सेवाएँ अधिनियम द्वारा अधिरोपित कृत्यों के निर्वहन में अपनी सहायता के प्रयोजन के लिए प्राप्त कर ले। इस उपबंध के समक्ष पूर्व से ही न्यायालय को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 45 के अधीन अपने अन्तर्निहित अधिकार में चिकित्सीय विशेषज्ञ की सहायता लेने के सम्बन्ध में शक्ति प्राप्त है। वैवाहिक अधिनियमों, सिविल प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में या किसी अन्य विधि में न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त नहीं है कि वह किसी व्यक्ति को चिकित्सीय परीक्षण के लिए बाध्य कर सके। लेकिन ऐसी परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता न्यायालय में है। यदि किसी तथ्य का प्रमाणित होना मुख्यतः या अन्ततः चिकित्सीय परीक्षा पर निर्भर करता है। और वह व्यक्ति इससे इंकार कर देता है तो न्यायालय उसके विपरीत उपधारणा कर सकता है। नपुसंकता के मामले में यदि प्रार्थी, प्रत्यर्थी से यह अपेक्षा करता है कि वह अपने स्वास्थ परीक्षण कराये और प्रत्यर्थी इससे इंकार करता है तो न्यायालय यह उपधारणा कर सकती है कि प्रत्यर्थी नपुसंक है। सामान्य रूप से यह उपधारित किया जाता है कि प्रत्येक स्त्री और पुरूष संतानोत्पत्ति के लिए सक्षम है। इस उपधारणा के विरूद्ध चिकित्सकीय साक्ष्य प्रस्तुत कर यह सिद्ध करना आवश्यक है कि पक्षकार में निश्चित रूप से ऐसी स्थाई अक्षमता है ।
विभागीय जाँच प्रक्रिया (Procedure of Department Inquiry) 1. विभागीय जाँच का प्रारम्भ- विभागीय जाँच हेतु जब कोई प्रकरण अनुशासनिक अधिकारी द्वारा तैयार किया जाता है। तब आरम्भिक स्थिति में तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित होता है. जो इस प्रकार है- (1) आरोप पत्र तैयार किया जाना- विभागीय जाँच के प्रारंभ करने की जो प्रथम महत्वपूर्ण कार्यवाही है, वह अनुशासनिक अधिकारी द्वारा, जिस कदाचरण हेतु विभागीय जाँच का निर्णय लिया गया है. आरोप-पदों का तैयार किया जाना है। आरोप पत्र तैयार करना 'सी.जी.सी.एस.सी. सी.ए. नियम के अधीन एक आज्ञापक (Mandatory) कार्यवाही है। इस प्रकार सी.जी.सी.एस.सी.सी.ए. नियम के नियम 14 (3) में अपचारी अधिकारी को एक आरोप पत्र जारी करने का प्रावधान किया गया है, जिसमें मुख्यतया निम्न ब्यौरे होंगे- (ⅰ) लगाए गए आरोप या आरोपों का विवरण( Discription of Charges ), (in) आरोपों पर अभिकथन ( Statement of Allegations ), (ii) अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची ( List of documentary evidence ), (iv) साक्षियों की सूची ( List of witnesses )। (2) अपचारी अधिकारी को आरोप पत्र जारी किया ज...
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